मकर संक्रांति का त्यौहार हिन्दू धर्म का पावन पर्व है । इसे अत्यधिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के अलग अलग प्रान्तों में इस त्योहार को अलग अलग नामों से जाना जाता है और भिन्न भिन्न रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
कहीं मकर संक्रांति को तिल संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता हैं और इस मेले को माघ मेले और किसान संक्रान्ति और फसल संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है । इस पर्व पर गंगा घाटों और गंगा सागर में बढ़े बढ़े मेले लगते हैं। इस पर्व के समय गुड़ और तिल बाँटने की प्रथा भी है।
वहीं कहीं इसे लोहरी तो कहीं पोंगल तो कहीं माघी,पतंग त्यौहार तो फिर कहीं संक्रान्ति के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन को खिचड़ी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन खिचड़ी बनाते हैं और कौवे के लिए रखते हैं और खुद भी खाते हैं । इसलिए इसे खिचड़ी संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है।
मकर संक्रांति के अवसर में कई जगह पर नए वर्ष की भी शुरुआत होती हैं । इस दिन देश के कई जगहों पर लोग पतंग उड़ाकर त्यौहार मनाते हैं।
इस त्यौहार में उड़द की दाल के पकवान बनाये जाते हैं । इस दिन अनेक पकवान बनाये जाते हैं । कहीं कहीं अलग अलग पकवान बनाकर लोग कौवों के लिए रख देते हैं यह माना जाता हैं कि मकर संक्रांति पर कौवों को खाना खिलाया जाता हैं।
वहीं बात करें देवभूमि उत्तराखंड की तो यहां मकर संक्रांति को घुघुतिया त्यार कहा जाता हैं, इस दिन आटे में गुड़ मिलाकर घुगुतिया बनाई जाती हैं । फिर बच्चों के लिए उनकी माला बनाई जाती हे और अनेक पकवान बनाए जाते हैं, उड़द की दाल के पकवान को कौवों के लिए रखा जाता हैं, जिसे सुबह सुबह उठकर बच्चे कौवों के लिए खाना पानी और अक्षत रोली लेकर और अपनी घुगुतों की माला पहनकर कौवों को बुलाते हैं । कोवों को काले कौवा काले घुगुति माला खाले कहकर बुलाया जाता हैं ।
बता दें कि देश के कई हिस्सों में मकर संक्रांति को बेलों और गौ माता की पूजा करके मनाया जाता हैं। इस दौरान लोग लोकनृत्य करते हुए हर्षोल्लास के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं। इस दिन तीर्थ स्थलों में भव्य मेलों का भी आयोजन होता है। इन दिनों खेतों में खड़ी फसलें रंग बदलने लगती हैं और लहलहाती हुई अति उत्तम दिखाई देती हैं ।इस त्यौहार में लोग घरों में जाकर तिल से बने व्यंजनों का आदान प्रदान करते है।